श्री जयवीर शेरगिल ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि हिंदी की एक कहावत है कि ‘कीजिए ना बैठकर बातचीत, दस हजार जगह पहुंचेगी, दसों की ये बातचीत’।
तीन राज्यों में कांग्रेस की जीत के बाद अब भाजपा राजनीतिक हताशा में घर-घर की निजी बातचीत सुनना चाहती है, लगता है कि ‘भाजपा को पची नहीं हार और इसलिए किया इस देश के नागरिकों की निजता के अधिकार पर वार’। आज एक तानाशाही सरकार का एक तुगलकी फरमान आया है, 20 दिसंबर, 2018, पहले पढ़ देता हूं कि इस आदेश का निचौड़ क्या है।
सरकार कमिश्नर ऑफ पुलिस सहित 10 जांच ऐजेंसियों को ये हक देती है कि वो कोई भी कम्प्यूटर, इंटरसेप्ट, मॉनिटर और डिक्रिप्ट कर सकते हैं और जो जानकारी जो उस कम्प्यूटर में है, जो जनरेट होती है, ट्रांसमिट होती है, रिसीव होती है और जो स्टोर होती है, उसको ये 10 ऐजेंसिंया कभी भी, किसी भी वक्त इंटरसेप्ट कर सकती हैं।
अब प्रश्न है नीयत का कि यह आदेश क्यों आया है। साढ़े चार साल से इस देश की जनता ने देखा, खैर मोदी सरकार का, मोदी जी का तो बतौर मुख्यमंत्री पहले का भी ट्रैक रिकॉर्ड है कि उनको तांक-झांक करने की और जासूसी करने की लत लग चुकी है। ये वो मोदी सरकार है जो, ना संविधान में विश्वास रखती है, ना राइट टू प्राइवेसी में विश्वास रखती है, ना सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में विश्वास रखती है और ना लोकतंत्र में विश्वास रखती है। तो ये जो आज एक होम मिनिस्ट्री का आदेश आया है, ये लोकतंत्र को मोदी तंत्र बनाने का हथकंडा और हथियार है।
आपने ये भी देखा कि किस प्रकार इस सरकार ने आधार का जो विरोध किया कि आधार के माध्यम से हम आपकी निजी सूचना, निजी जानकारी, आपकी इंफॉर्मेशन हम आधार कार्ड से जोडेंगे और जब सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट आई, तब जाकर ये सरकार कहीं रुकी। आपने ये भी देखा कि जब राइट टू प्राइवेसी की सुप्रीम कोर्ट में जजमेंट चल रही थी, केस चल रहा था, इसी सरकार ने कहा – इस देश के संविधान के अनुसार ‘निजता का अधिकार’ है ही नहीं।
ये वही सरकार है जो सोशल कम्युनिकेशन हब बिल लेकर आई और सोशल कम्युनिकेशन हब – 2 लेकर आई, जिसके जरिए वो आपके फेसबुक, यूट्यूब, ट्विटर पर जो आप करते हैं, उसको सुनना चाहती है, उसको एनालाइज करना चाहती है।
राफेल घोटाले में एक चर्चा शुरु हुई कि चौकीदार भागीदार है। अब ये जो आदेश आया है, उससे ये स्पष्ट होता है कि चौकीदार जासूस भी है। चौकीदार आवाज लगाता है- जागते रहो, मोदी सरकार ने आदेश दे दिया है – झांकते रहो।
अहम बात ये है कि ये जो आदेश आया है, ये असंवैधानिक है, गैर कानूनी है, इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट 2000 जिसके तहत इसको जारी किया गया है, ये उसके अनुसार भी नहीं है और सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की जो जजमेंट, जो राइट टू प्राइवेसी के मामले में आई थी, उसकी भी इस आदेश ने धज्जियाँ उड़ा दी। वकील होने के नाते भी ये आपको बताना बहुत अहम है कि इस सेक्शन 69 के चार पहलू और चार स्तंभ हैं।
- पहला, कि कब-कब ये आदेश और इस आदेश को जारी किया जा सकता है। पहले कि सिर्फ केस बॉय केस बेसिस, अर्थात् सरकार एक खुला अधिकार, एक बेलगाम अधिकार, एक बेलगाम पॉवर नहीं दे सकती, आपको केस बाय केस ऐसे आदेश जारी करने पड़ेंगे।
- दूसरा, ऐसा आदेश केवल जनहित में जारी किया जा सकता है।
- तीसरा, जब देश की अखंडता को खतरा हो, सुरक्षा को खतरा हो, तभी ऐसा आदेश जारी किया जा सकता है।
- चौथा, अगर सरकार को कोई जानकारी है कि कोई गुनाह, कोई जुर्म कोई हमला होने वाला है, तब ऐसा आदेश जारी किया जा सकता है।
इस होम मिनिस्ट्री के आदेश का असर देखिए, कि मोदी जी के कान और आँखे अब घर-घर में हैं। मोदी जी हर फोन पर हुई बातचीत, हर वॉट्सअप पर हुई बातचीत, हर एसएमएस पर हुई बातचीत सुन सकते हैं। कोई माँ अगर अपने बेटे से स्काइप पर बात कर रही है तो मोदी जी सुन सकते हैं, कोई पत्नी अपने पति से बात कर रही है तो मोदी जी सुन सकते हैं, कोई पिता अपने बेटे से बात कर रहा है तो मोदी जी सुन सकते हैं, कोई पत्रकार मोदी सरकार की नीतियों पर टिप्पणी कर रहा है तो मोदी जी सुन सकते हैं, कोई किसान मोदी जी की किसान विरोधी नीतियों पर कुछ कह रहा है, मोदी जी सुन सकते हैं, कोई देश का युवा, स्टूडेंट गूगल कर रहा है, How Modi Government failed, मोदी जी वो भी सुन सकते हैं। तभी कहा है कि 2014 में मोदी जी सत्ता में जिस नारे से आए- ‘घर-घर मोदी’, अब जब सत्ता जा रही है, 2019 में वो नारा बन गया है, ‘घर-घर जासूसी’।
ये होम मिनिस्ट्री का आदेश कानून के तहत जनहित में नहीं, सिर्फ मोदी जी के हित में जारी किया गया है। ये आदेश देश की अखंडता, सुरक्षा और कोई खतरे से बचने के लिए नहीं किया गया, ये आदेश मोदी सरकार को वोट की चोट के खतरे से बचाने के लिए किया है। तीन राज्यों के जो चुनाव हुए हैं, उसकी हार से बौखला कर 2019 में जो भाजपा का कमल का फूल मुरझाने वाला है और कांग्रेस के विकास का परचम लहराने वाला है, उससे घबरा कर वोट के चोट के खतरे से बचने के लिए ये आदेश जारी किया गया है, क्योंकि अभी तक भाजपा सरकार ने कोई सफाई नहीं दी, कि ये आदेश क्यों जारी किया गया है, क्या ऐसी बात हो गई कि 10 ऐजेंसी 125 करोड़ से अधिक देश की जनता के कम्प्यूटर पर बैठ कर जासूसी कर सकती हैं?
दूसरी अहम बात, ये आदेश एक पेज का है, ये सुप्रीम कोर्ट की 547 पेज की जजमेंट है। आज इस एक पेज के आदेश ने सुप्रीम कोर्ट के 547 पेज की जजमेंट, राइट टू प्राइवेसी वाली जजमेंट की धज्जियाँ उड़ा दी और कुचल दिया। इस 547 पेज की जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट के 9 न्यायाधीशों ने राइट टू प्राइवेसी का अधिकार आर्टिकल 21 संविधान के अनुसार हर देशवासी के हाथ में थमा दिया और इस आदेश के तहत वही दिया हुआ अधिकार, हर देशवासी का जो अधिकार संवैधानिक अधिकार था, होम मिनिस्ट्री ने उसको छीन लिया और कुचल दिया और जांच ऐजेंसियों को एक खुली जासूसी करने का अधिकार दे दिया।
देशवासियों को ये याद दिलाना बहुत अहम है कि इन 547 पेज मे क्या लिखा गया था। पहली बात, राइट टू प्राइवेसी, जो आपके जीने का अधिकार आर्टिकल 21 संविधान का है, उसका एक अहम हिस्सा है। अगर निजता का अधिकार मनुष्य के पास नहीं है तो मनुष्य और जानवर में कोई अंतर नहीं रह जाता, ये सुप्रीम कोर्ट ने लिखा है। दूसरा, 9 के 9 जजिस ने एक बात दोहराई थी कि ये इस सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट से हम सरकार के बीच और जनता के बीच एक संवैधानिक दीवार खड़ी कर रहे हैं, ताकि जनता की जो निजी जिंदगी है, सरकार उस दीवार को लांघ कर, ऊपर चढ़कर या झांक कर ना देख पाए और आज इस आदेश ने इस सुप्रीम कोर्ट की जजमेंट की जो अहम बातें थीं, उसको दर किनारे करते हुए ये असंवैधानिक बात, ये निर्णय लिया है।
आपको याद होगा कि हाल ही में सोशल कम्यूनिकेशन, सोशल मीडिया कम्यूनिकेशन हब बनाने की चर्चा थी, जब मीडिया का दबाव आया, जनता में आक्रोश आया तब उस निर्णय को वापस लेना पड़ा। तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की दो स्पष्ट मांगें और दो प्रश्न है।
पहला प्रश्न, मोदी सरकार ये स्पष्ट करे कि वो कौन सा जनहित है, जिसमें ये तानाशाही तुगलकी फरमान जारी किया है, जो मेरी निजता के अधिकार को पूरी तरह कुचलता है?
दूसरा, क्या मोदी सरकार को इस देश के मतदाताओं से घबराहट हो रही है, डर लग रहा है कि उन्होंने ऐसा आदेश जारी किया है?
तीसरा, क्या ये आदेश मोदी हित में जारी हुआ है कि जनहित में जारी हुआ है?
चौथा अहम प्रश्न, क्या अब हिंदुस्तान एक पुलिस स्टेट बन गया है, एक सर्विलेंस स्टेट बन गया है?
मांग ये है कि ये गैर-कानूनी आदेश जल्द से जल्द वापस लिया जाए और जनता को सफाई दी जाए कि ये आदेश क्यों जारी किया गया।
